Wednesday, January 24, 2024

Ramayan - Ek Soch Ek Pahlu Ek Satya

क्या आपने सोचा है कभी कि 

प्रभु श्रीराम चार भाई ही क्यों थे तीन या पांच क्यों नहीं , लक्ष्मण जी श्रीराम के साथ वन क्यों गए , भरत जी क्यों नहीं, उन्होंने श्रीराम के खड़ाऊ से राजकाज कैसे संभाला और शत्रुघ्न भैया अयोध्या में ही क्यों थे 

जब हम तथ्यों को गहराई से टटोलते है तो यह एक अद्भुत विवेचना की ओर ले जाता है 

चार भाई चार पुरुषार्थ के प्रतीक है 

राम - धर्म 

लक्ष्मण - काम 

भरत - मोक्ष 

शत्रुघ्न - अर्थ 

धर्म के साथ कामना या इच्छा सदैव साथ रहनी चाहिए इसलिए लक्ष्मण हमेशा साथ रहे प्रभु के साथ 

भरत जी मोक्ष के प्रतीक है तो खड़ाऊ (  धर्म के प्रतीक) सहारे तपस्या करते रहे ।

शत्रुघ्न अर्थ के प्रतीक है तो वो राजधानी में ही रहेंगे , अर्थ कभी छोड़ के नहीं जाता 


भले ही लक्ष्मण जी (काम ) को प्रभु (धर्म ) अधिक प्रिय हो, लेकिन धर्म को तो मोक्ष अधिक प्रिय थे ।  

तुलसीदास जी ने भी कहा 

रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई  


थोड़ा और तथ्यों को टटोले तो राजा दशरथ की तीन रानियां ही क्यों थी 

यह चार पुरुषार्थ एक श्रोत से नहीं आ सकते तो श्रीराम आये माता कौशल्या से (सतोगुण ) , श्रीलक्ष्मण और श्रीशत्रुघ्न ( कामना /इच्छा और अर्थ ) ये आये माता सुमित्रा ( रजोगुण ) से 

माता कैकेयी तमोगुण की प्रतीक है तो उनसे उत्पन्न हुए भरतजी , मोक्ष प्राप्त करने के लिए तमोगुण के पार जाना पड़ेगा। 


राम सिया राम।  सिया राम जय जय राम। 





Tuesday, January 23, 2024

Ved mat sodhi sodhi

वेद मत शोधि शोधि 

शोधि के पुराण सब 

संत और असन्तं के भेद को बताओतो 

कपटी क़ुराही क्रूर कलि के कुचालि जीव

 कौन रामनामहु के चर्चा चलाओतो। 


बेनी कवि कहे मानो मानो हो प्रतीत यह पावन हिये में कौन प्रेम उपजाओतो 

भारी भवसागर उतारते कौन पार  जो पै यह रामायण तुलसी न गावतो। । 

Monday, January 22, 2024

Prabhu ShriRam - Stuti

 श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणं। 

नवकंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ।। १ ।।

कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुंदरम। 

पट्पीत मानहु तड़ित रूचि सूचि नौमि जनक सुतावरम ।। २ ।।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम। 

रघुनंद आनदकंद कोशलचंद दशरथनंदनम ।। ३  ।।

सिरमुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं। 

आजानुभुज सर चाप धर संग्रामजीत खरदूषणं ।। ४ ।।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम। 

मम ह्रदय कंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनं ।। ५ ।।




मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो। 

करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ।। ६  ।।

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हर्षित अली 

तुलसी भवानिहि पूजी पुनि - पुनि मुदित मन मंदिर चली ।। ७ ।।

Wednesday, January 17, 2024

My All time Indian XI

 Test

1. Sunil Gavaskar

2. Virender Sehwag

3. Rahul Dravid

4. Sachin Tendular

5. V.V.S Laxman

6. M. S. Dhoni

7. Kapil Dev

8. Anil Kumble

9. J Srinath

10. B. Chandrasekhar

11 Bishen Singh Bedi#

12 Z Khan


ODI

1. S Tendulkar

2. V Sehwag

3. V Kohli

4. Y Singh

5. S Raina

6. M S Dhoni

7. H Singh

8 R Jadeja

9. Z Khan

10 J Srinath

11 A Kumble


T20

1. Rohit Sharma

2. V Sehwag

3. V Kohli

4. Y Singh

5. S Raina

6. M S Dhoni (c)

7. R Jadeja

8. H Pandya

9.  H Singh

10. J Bumrah

11  Shami

Friday, January 12, 2024

Vidyadhanam SarvaDhanam Pradhanam

बहुत दिनों पहले की एक बात है।  उस वक़्त मैं ज्ञान सरोवर नाम के एक स्कूल में कक्षा ६ में पढता था।  हमारे स्कूल में एक अध्यापक थे श्री कन्हैया पांडेय। उनकी बात हमेशा मेरे कानो में रहती है जब भी किसी दुविधा में रहता हूँ। 


विद्या - शिक्षा - ज्ञान  ये हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है |  इसकी महत्ता जीवन के इस पड़ाव पे और ज्यादा समझ में आती है। 


येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्म। 

ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।


जिसके पास न विद्या हो न ताप, दान हो और न ही ज्ञान चरित्र गुण और धर्म हो 

वो इस धरा पे मनुष्य रूप में हिरन की तरह चर रहा है 


विद्या ददाति विनयम विनयाद याति पात्रताम। 

पात्रत्वात धनमाप्नोति धनाद धर्मः ततः सुखं।। 


विद्या से विनय की प्राप्ति होती है , विनय से योग्यता प्राप्त होती है 

और जब योग्यता प्राप्त होती है तो धन प्राप्त होता है और धन से धर्म और अंततः सुख की प्राप्ति होती है 


रूप यौवन सम्पन्ना विशाल कुल सम्भवा । 

विद्या हीना न शोभन्ते निर्गन्धा िव किंशुका। । 


रूप और यौवन से सम्पन्न मनुष्य , उच्च कुल में भी उत्पन्न होकर यदि विद्याहीन है तो सुगंधहीन फूल की तरह रहते है और शोभा नहीं देते है 


न चौर हार्यं न च राज हार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी।

व्यये कृते वर्धते नित्यं  विद्या धनं सर्व धनं प्रधानम ।।  


विद्या धन सबसे बड़ा धन होता है।  इसे न कोई चोर चुरा सकता है न कोई राज्य लूट सकता है 

यह न तो भाईयो में बांटा जा सकता है और न ही यह भारी होता है 

जब कोई इसे खर्च करता है तो नित्य इसकी वृद्धि ही होती है 


Thursday, January 11, 2024

Karna - Antim pal

                                                         कर्ण  - अंतिम पल 


स्रोत - रश्मिरथी 


उछलकर कर्ण  स्यंदन से जमीन पर 

फंसे रथचक्र पर भुजबीच भरकर 

लगा ऊपर उठाने जोर करके 

कभी सीधा कभी झकझोर करके 


मही डोला सलिल आगार डोला 

न डोला किन्तु जो चक्का फंसा था 

चला वो जा रहा निचे धंसा था 

Tuesday, January 9, 2024

Kavi Parichay - Makhanlal chaturvedi


                                                        कवि परिचय - श्री माखनलाल चतुर्वेदी 


वाणी में बड़वानल भावना में भूचाल का नाम है माखनलाल 

ओज और मौज का नाम है चतुर्वेदी 

राम नाम पे बिक गए तुलसी , श्याम स्नेह पर छक गयी मीरा 

तो देश प्रेम पे लूट गए माखनलाल 



Barahmasa - Kis mahine Kya khaye kya na khaye

क्या खाये 

चैते चना वैशाखे तेल जेठे शयन आसाढे खेल 

सावन हर्रे भादो तिल कुवार मास गुड़ सेवे नित 

कार्तिक मूली  अगहन तेल पूस में करो दूध से मेल 

माघ मास  गुड़ खीचड़ खाये  फागुन उठ प्रात नहाये। 


क्या न खाये 

चैते गुड़ वैशाखे तेल। जेठ के पंत अषाढे बेल। 

सावन साग भादो दही। कुवार करेला कार्तिक दही 

अगहन जीरा पूसे  धना। माघे मिश्री फाल्गुन चना 

जो कोई इतने परिहरे। ता घर बैद पद नहीं धरे। 


मास  अंग्रेजी महीना  क्या खाये  क्या नहीं खाये 
चैत्र ( चैत)
मार्च - अप्रैल 
 चना 
 गुड़ 
वैशाख 
अप्रैल - मई 
 बेल 
 तेल 
ज्येष्ठ ( जेठ)
मई- जून 
 अधिक शयन 
 चलना खेलना 
आषाढ़ 
जून - जुलाई 
 खूब खेल , कसरत 
 हरी सब्जियां , बेल 
श्रावण ( सावन)
जुलाई - अगस्त 
 हर्रे 
 साग हरी सब्जियां 
भाद्रपक्ष ( भादो)
अगस्त - सितम्बर 
 तिल 
 दही 
आश्विन ( कुवार) 
सितम्बर - अक्टूबर 
 गुड़ 
 करेला 
कार्तिक 
अक्टूबर - नवंबर 
 मूली 
 दही 
मार्गशीर्ष ( अगहन) 
नवंबर - दिसंबर 
 तेल 
 जीरा 
पौष ( पूस)
दिसंबर - जनवरी 
 दूध 
 धनिया 
माघ 
जनवरी - फरवरी 
 घी खिचड़ी 
 मिश्री 
फाल्गुन ( फागुन)
फरवरी - मार्च 
 सुबह उठ कर नहाये 
 चना