Friday, January 12, 2024

Vidyadhanam SarvaDhanam Pradhanam

बहुत दिनों पहले की एक बात है।  उस वक़्त मैं ज्ञान सरोवर नाम के एक स्कूल में कक्षा ६ में पढता था।  हमारे स्कूल में एक अध्यापक थे श्री कन्हैया पांडेय। उनकी बात हमेशा मेरे कानो में रहती है जब भी किसी दुविधा में रहता हूँ। 


विद्या - शिक्षा - ज्ञान  ये हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है |  इसकी महत्ता जीवन के इस पड़ाव पे और ज्यादा समझ में आती है। 


येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्म। 

ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।


जिसके पास न विद्या हो न ताप, दान हो और न ही ज्ञान चरित्र गुण और धर्म हो 

वो इस धरा पे मनुष्य रूप में हिरन की तरह चर रहा है 


विद्या ददाति विनयम विनयाद याति पात्रताम। 

पात्रत्वात धनमाप्नोति धनाद धर्मः ततः सुखं।। 


विद्या से विनय की प्राप्ति होती है , विनय से योग्यता प्राप्त होती है 

और जब योग्यता प्राप्त होती है तो धन प्राप्त होता है और धन से धर्म और अंततः सुख की प्राप्ति होती है 


रूप यौवन सम्पन्ना विशाल कुल सम्भवा । 

विद्या हीना न शोभन्ते निर्गन्धा िव किंशुका। । 


रूप और यौवन से सम्पन्न मनुष्य , उच्च कुल में भी उत्पन्न होकर यदि विद्याहीन है तो सुगंधहीन फूल की तरह रहते है और शोभा नहीं देते है 


न चौर हार्यं न च राज हार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी।

व्यये कृते वर्धते नित्यं  विद्या धनं सर्व धनं प्रधानम ।।  


विद्या धन सबसे बड़ा धन होता है।  इसे न कोई चोर चुरा सकता है न कोई राज्य लूट सकता है 

यह न तो भाईयो में बांटा जा सकता है और न ही यह भारी होता है 

जब कोई इसे खर्च करता है तो नित्य इसकी वृद्धि ही होती है 


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