मेरे पापा (श्री देवकी नंदन मिश्र ) द्वारा लिखित यह कविता बचपन से हम सुनते आ रहे हैं।
अद्भुत वीर रस से पूरित यह कविता १९६१-६२ भारत चीन युद्ध पर आधारित है।
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दसो नोह ज़ोर शारदा से करी अर्जी हम कलम के बनायी आज हमरा लौर दा
ख़ौरे दा मुदई के हमरा के नीके से नाही ता हमरा के निपटे ख़ौर दा बहुत गीत गवनी अब गाइब लौटला पे भारत माता के बचाए के हमारा मौर दा
कलम बर्दााई के तेज बनल नाच उठल भाला मतवाला बा ऐंठत परताप के चेतक चिनहात हिनहिनात बाटे इरखा पे पेकिंग डर मानता पोरस के ताप के मकमोहन बूझअ ता लक्ष्मण के पारल हा .. लाँघी से काहे ना खून फेंक मार जाई
भारत माता के जे चाही चोरवाल ता काहे ना रावण फतिंगास जर जाइ
लागि केहुनाठ जामवंत हनुमंत के ता। . भूभुर भर भुरकुस में पेट कुनिये पड जाई
कैलो अनेत भला निबहे ला जिंदगी भर। . छू दिहले पंजरी चराक दे चरक जाई
लगा के मुल्तानी पटाक से पटक देम। . पाइब अकेला में चाहे दुकेला में
सहका जन . लउर जो उठाईब त हुमच के हुरवठ देम डाल के घघेला में !!
जैसे कुकुर बिलाई के भभौरे ला। . केतनो केंकियाब बाकी भाभोर देब !
चेला जी. गुरु पे लंगी लगाइबा ता धईला पे चिन्हब न.. लादे खखोर देब !!
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अद्भुत वीर रस से पूरित यह कविता १९६१-६२ भारत चीन युद्ध पर आधारित है।
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दसो नोह ज़ोर शारदा से करी अर्जी हम कलम के बनायी आज हमरा लौर दा
ख़ौरे दा मुदई के हमरा के नीके से नाही ता हमरा के निपटे ख़ौर दा बहुत गीत गवनी अब गाइब लौटला पे भारत माता के बचाए के हमारा मौर दा
कलम बर्दााई के तेज बनल नाच उठल भाला मतवाला बा ऐंठत परताप के चेतक चिनहात हिनहिनात बाटे इरखा पे पेकिंग डर मानता पोरस के ताप के मकमोहन बूझअ ता लक्ष्मण के पारल हा .. लाँघी से काहे ना खून फेंक मार जाई
भारत माता के जे चाही चोरवाल ता काहे ना रावण फतिंगास जर जाइ
लागि केहुनाठ जामवंत हनुमंत के ता। . भूभुर भर भुरकुस में पेट कुनिये पड जाई
कैलो अनेत भला निबहे ला जिंदगी भर। . छू दिहले पंजरी चराक दे चरक जाई
लगा के मुल्तानी पटाक से पटक देम। . पाइब अकेला में चाहे दुकेला में
सहका जन . लउर जो उठाईब त हुमच के हुरवठ देम डाल के घघेला में !!
जैसे कुकुर बिलाई के भभौरे ला। . केतनो केंकियाब बाकी भाभोर देब !
चेला जी. गुरु पे लंगी लगाइबा ता धईला पे चिन्हब न.. लादे खखोर देब !!
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