प्रभु श्रीब्रह्मा के विचारों से उत्पन्न उनके चार मानसपुत्र सनक, सनंदन , सनातन और सनतकुमार - अपने तपोबल से जहाँ अत्यंत ज्ञानी और गुणसम्पन्न थे , वहीँ वे चारो अपनी आयु से काफी छोटे दीखते थे, बिलकुल छोटे से बालक की भांति। उन्होंने अपने आप को प्रभु की वंदना में समर्पित कर दिया था।
एक बार वो भगवान् श्री हरिविष्णु से मिलने बैकुंठ धाम पहुंचे। जहाँ पर उन्हें दो द्धारपाल जय और विजय मिले जिन्होंने उन मानसकुमारों को प्रभु से मिलने से रोक लिया। उन्होंने कहा कि प्रभु अभी विश्राम कर रहे हैं इसलिए आप थोड़ी देर बाद उन्हें मिल सकते है। अभी आपको जाने की अनुमति नहीं है।
कुमारों ने उन दोनों को बहुत समझाया लेकिन वो नहीं मान रहे थे. इससे उन कुमारों को क्रोध आ गया और उन्होंने इन दोनों को श्राप दे दिया कि तुम अब पृथ्वी लोक पर सामान्य मनुष्यों की तरह जन्म लोगे।
तभी भगवान श्री विष्णु वहां आ पहुंचे और उन्हें इन सभी गतिविधियों के बारे में पता चला
जय और विजय अब भगवन के सामने बहुत विनती करने लगे, माफ़ी मांगने लगे।
भगवन बोले कि यह ब्रह्मवाक्य असत्य तो नहीं हो सकता परन्तु मैं तुम्हे दो उपाय बताता हूँ -
१. तुम मेरे भक्त की तरह पृथ्वी लोक पर सात जन्म लोगे
२. तुम मेरे शत्रु बनकर पृथ्वी लोक पर तीन जन्म लोगे
यह सुनकर जय और विजय ने प्रभु से कहा कि हमे दूसरा वाला मार्ग मंजूर है लेकिन हमारी एक विनती है प्रभु कि हमारी मृत्यु आपके हाथों से ही हो हर जन्म में
इस तरह से प्रभु श्रीविष्णु ने अपने लीला से युगों के बदलने की कहानी और धर्म स्थापना को एक बहुत ही अच्छे ढंग से पिरोया
पहले जन्म ( सतयुग ) में हिरण्यकशिपु ( नरसिंघ )
और हिरण्याक्ष ( वराह )
दुसरे जन्म( त्रेता युग) में रावण और कुम्भकर्ण ( श्रीराम )
तीसरे जन्म ( द्धापर युग) में शिशुपाल और दन्तवक्र ( श्रीकृष्ण )
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