Sunday, October 17, 2021

Company matters :)

अहम् मुनीनां वचनं श्रुणोमि

गवाशनानाम सा श्रुणोति वाक्यं 

न च सदगुणो वा 

संसर्गजा  दोषगुणा भवन्ति ।।


एक बार एक साधु  भिक्षा मांगते हुए एक घर पहुँचते है।  वहां पहुँचते हुए देखते है कि  एक तोता उन्हें भला बुरा कहने लगता और वहां से भगाने लगता।  इससे साधू काफी दुखी हो गए और थोडा आगे की और बढ़ते है 

थोड़ी देर के बाद जैसे ही वो एक दुसरे घर की तरफ आगे बढ़ते है तो वहां बैठा तोते ने उनका स्वागत बहुत ही मीठी वाणी में किया उसने कहा हे प्रभु आईये और बैठिये. बहुत अच्छा लग रहा आपके दर्शन से। और हरि भजन गाने लगा 

तब साधू सोचने लगते है कि ऐसा ही एक तोता मैंने बगल के घर में देखा वहां पे तो वो मुझे गालिया दे रहा था। . एक जैसे दिखने वाले दो पक्षी इतने अलग कैसे।  उतने में वो तोता ही कहता है कि हम दोनों एक ही माता पिता की संतान है. एक और जहाँ मैं मुनि आश्रम में पला बढ़ा वही दूसरी और वो बेचारा एक कसाई के घर पे ।  एक ओर जहाँ मैं रोज अच्छी बाते सुनता , हरि भजन सुनता वही वो रोज गालिया सुनता, मारने पीटने की बाते सुनता 

इसलिए मेरी वाणी ऐसी है और उसकी ऐसी,

हे प्रभु न तो मैं गुणी हूँ और न तो वो दोषी , अपितु जो भी दोष और गुण है वो संसर्ग ( संगति ) से है. इसमें उसकी कोई गलती नहीं